प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का किया उद्घाटन, चर्चा का कारण है प्राचीन इतिहास

Nalanda University History – बिहार के राजगीर के पहाड़ की तलहटी में नया नालंदा यूनिवर्सिटी का नया कैंपस मंत्र मुग्ध कर देने वाला है। नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे खूबसूरत विश्वविद्यालय की लिस्ट में जगह बना सकता है। ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन 19 जून को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया।

वैश्विक स्तर प्रदेश की क्षमताओं को प्रदर्शित करने वाला महत्वपूर्ण कदम जिसकी लागत 1749 करोड रुपए बताई जा रही है। नालंदा यूनिवर्सिटी केंपस बिहार राज्य के नालंदा जिले में राजगीर पहाड़ की तलहटी में प्राचीन खंडहरों से कुछ दूरी पर है। बेहद मनमोहन नालंदा यूनिवर्सिटी सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की सबसे खूबसूरत यूनिवर्सिटी का प्रमाण है। भारत के लिए यह एक स्वर्णिम युग की शुरुआत है। और विश्व भर में ज्ञान और अध्ययन के नए केंद्र के रूप में अपनी पहचान बिखेरेगा।

नालंदा विश्वविद्यालय की पुनरूत्थान

Nalanda University History

हजारों साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर राख कर दिया गया था। जिसे दोबारा इंडियन पार्लियामेंट एक्ट 2010 के तहत पुन स्थापित किया गया। यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की यूनिवर्सिटी है जिसे 18 सदस्य देश का समर्थन प्राप्त है।

नालंदा यूनिवर्सिटी का नया परिसर नेता जीरो सिद्धांतों पर डिजाइन किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नालंदा का पुनरुत्थान नया परिषद दुनिया को भारत की क्षमता से रूबरू कराएगी।

Net zero campus क्या है?

ऐसी इमारत जो ऊर्जा के शून्य इस्तेमाल पर संचालित होती है इसे हम जीरो एनर्जी बिल्डिंग भी कह सकते हैं। सरल शब्दों में यदि कहें तो यह परिसर साल में जितनी ऊर्जा का उपयोग करेगा उतनी ही ऊर्जा का उत्पादन भी करेगा। साथ ही नालंदा परिसर अग्रणी नेट जीरो एनर्जी, नेट जीरो एमिशन, नेट जीरो वॉटर, नेट जीरो वेस्ट मॉडल के साथ निरंतर की भावना को आगे बढ़ाएगा।

यह काम कैसे करता है?

  • नालंदा विश्वविद्यालय का कैंपस नेता जीरो ग्रीन केंपस के रूप में कार्य करता है इसमें सौर ऊर्जा संयंत्र, जल उपचार और रीसाइकलिंग सुविधा, व्यापक जल निकाय और अन्य पर्यावरण के अनुकूल सुविधाएं हैं।
  • विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में नए परिसर का प्रदर्शन किया गया जिसमें एकेडमिक ब्लॉक, ऑडिटोरियम, हॉस्टल, इंटरनेशनल सेंटर, Amphitheater, Faculty Club और Sports Campus शामिल है।
  • यह विश्वविद्यालय कुछ साल पहले से ही संचालित हो रही है धीरे-धीरे नए कोर्सेज और डिपार्टमेंट शुरू किया जा रहे हैं यहां मैरिड वेस्ट और एंट्रेंस एग्जाम के आधार पर आप भी दाखिला ले सकते हैं MBA, PGDM जैसे नई कोर्सेज में CAT, MAT, XAT जैसी परीक्षाओं के स्कोर के आधार पर एडमिशन ले सकते हैं।
  • नालंदा यूनिवर्सिटी में Art’s, Humanities, Social Sciences, Management, Business Administration, Mass Media, Journalism, Science Courses, PHD समिति अन्य कोर्सेज भी संचालित किया जा रहे हैं आप ज्यादा जानकारी के लिए इसकी पूरी लिस्ट नालंदा यूनिवर्सिटी की ऑफिशल वेबसाइट nalandauniv.edu.in पर चेक कर सकते हैं।
नालंदा का पुनरुत्थान भारत के लिए स्वर्णिम युग का शुभारंभ है।

नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन इतिहास

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास से गहरा नाता है। ना आलम और दा शब्दों से मिलकर नालंदा बना है जिसका अर्थ होता है ऐसा उपहार जिसकी कोई सीमा नहीं है। गुप्त काल के दौरान पांचवी सदी में गुप्त राजवंश के कुमार गुप्त प्रथम ने इसका निर्माण किया गया था।

यह एक विशाल बहुत मटका हिस्सा था इसकी सीमा करीब 57 एकड़ में फैली हुई थी। इस विश्वविद्यालय में 300 कमरे 7 बड़े कक्षा और नौ मंजिला लाइब्रेरी थी जिसमें 10000 छात्र पढ़ते थे और 1500 अध्यापक दुनिया को 700 वर्षों तक ज्ञान देते रहे।

सातवीं सदी में चीनी यात्री हेंगसांग में भी नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। लगभग 1600 साल पहले स्थापित मूल नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया के पहले आवासीय नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। इतिहास और शिक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसकी समृद्धि को दिखाने वाला नालंदा विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड, Cambridge से भी 600 साल पहले बना था

प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रमुख और ऐतिहासिक केंद्र था हर्षवर्धन और पाल शासको ने बाद में इसका संरक्षण किया विश्वविद्यालय की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था जिसमें 90 लाख से भी ज्यादा पुस्तक मौजूद थी।

नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध के दो सबसे अहम के दो में से एक था यह प्राचीन भारत के ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार के योगदान को दर्शाता है। इस विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले ज्यादातर एशियाई देशों जैसे चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षुक होते थे।

इनके अलावा छात्रों का चयन उनकी मेधा के आधार पर किया जाता था जिसके लिए शिक्षा रहना और खाना सभी निशुल्क होता था यहां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कोरिया जापान चीन तिब्बत इंडोनेशिया ईरान ग्रीस मंगोलिया जैसे देशों के बीच छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे।

विश्व में ज्ञान का भंडार कहा जाने वाला नालंदा विश्वविद्यालय में धार्मिक ग्रंथ, लिटरेचर, थियोलॉजी, लॉजिक, मेडिसिन, फिलासफी, एस्ट्रोनॉमी, गणित और सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध सिद्धांतों का अध्ययन जैसे कई विषयों की पढ़ाई होती थीं। उन दिनों यहां पर होने वाली पढ़ाई विश्व में कहीं भी नहीं पढ़ाई जाती थी। 700 साल तक यह विश्वविद्यालय दुनिया के लिए ज्ञान का इकलौता मार्ग था। 700 साल की लंबी यात्रा के बाद 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया था।

19वीं सदि में इसकी अस्तित्व का पता चला

19वीं शताब्दी के दौरान 1812 में बिहार के स्थानीय लोगों को बौद्ध की मूर्तिया मिली थी। इसके बाद कई विदेशी इतिहासकारों में इस पर अध्ययन किया कई सदी तक यह विश्वविद्यालय जमीन में दबा हुआ था।

खिलजी ने क्यों जला दिया था?

नालंदा विश्वविद्यालय को टक्कर देने वाली दूसरी यूनिवर्सिटी आज तक दुनिया में ना हो सकी। यह इतनी अतुल्य थी कि दुस्साहिसियों ने उसे मिटाने के लिए तीन बार कोशिश की। 5वीं शताब्दी में पहली बार मिहिरकुल के नेतृत्व में और दूसरी बार आठवीं शताब्दी में बंगाल के गोद राजा के आक्रमण में भी इसे गंभीर नुकसान हुआ था।

ज्ञान का अद्वितीय केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय में 1193 तक शिक्षा का कार्य जारी था। अभूतपूर्व विश्वविद्यालय को खंडहर में तब्दील करने वाला तुर्की आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस पर हमला कर दिया और पूरे विश्व विद्यालय को तबाह कर दिया। खिलजी ने जब विश्वविद्यालय पर हमला किया, उस समय इसकी नवमी मंजिला पुस्तकालय में करीब 90 लाख किताबें, हस्तलिखित ताड़ पत्र पांडुलिपियों में मौजूद थी।

लाइब्रेरी में आग लगाने के बाद यह तीन महीने तक लगातार जलती रही। खिलजी को लगता था कि शिक्षा इस्लाम के लिए चुनौती है। इस घटना को 8 शताब्दियों से भी ज्यादा समय बीत चुका है। हालांकि बौद्ध धर्म को उखाड़ फेंकना इस हमले के पीछे एक प्रेरक शक्ति यह महत्वपूर्ण कारण हो सकती है। क्योंकि भारत के ही एक अग्रणी पुरातात्विक एचडी शंकलिया लिया ने अपनी 1934 की किताब The University of Nalanda में लिखा है कि परिसर का किला जैसा स्वरूप और इसकी समृद्धि की कहानियों से ‘ ईर्ष्या’ आक्रमण का कारण थी।

2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विरासत स्थल के रूप में घोषित किया गया था। खुदाई में मिला 23 हेक्टेयर में फैला हुआ हिस्सा जो आज मौजूद है उसे यूनिवर्सिटी के वास्तविक कैंपस का बस एक छोटा सा हिस्सा माना जाता है।

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