Ambedkar Jayanti (14th April 2024) in Hindi – बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती की पूरी जानकारी – डॉ. भीम राव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र में महार जाति के एक साधारण परिवार में हुआ. इस जाति को महाराष्ट्र में अछूत समझा जाता था और इनके साथ शेष समाज का व्यवहार ठीक वैसा ही था जैसा कि देश के दूसरे भागों में अछूत समझी जानेवाली जातियों के साथ होता था.
इनके पिता का नाम श्री रामजीराव और माता का नाम श्रीमती भीमाबाई था. अस्पृश्य समझी जाने के बावजूद महार जाति एक वीर जाति थी. इस जाति के लोग वीर योद्धा होते थे, इस कारण उन्हें सेना में आसानी से भरती कर लिया जाता था, परंतु सेना का कार्यकाल बहुत लंबा नहीं होता था. भीम राव आंबेडकर के पिता रामजीराव भी सेना में थे और सेवानिवृत्त हो चुके थे.
उन्हें सेना से पचास रुपए बतौर पेंशन मिला करते थे, परंतु परिवार के भरण-पोषण के लिए यह पर्याप्त नहीं था. घर में हमेशा किसी-न-किसी वस्तु का अभाव बना ही रहता था. वह समय ऐसा था, जब अछूतों की परछाईं भी उच्च वर्ग के लोगों पर नहीं पड़ सकती थी. उन्हें रास्ते में आवाज देते हुए चलना पड़ता था.
डॉ.भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान सभा के निर्मात्री समिति के अध्यक्ष थे. उनके कुशल मार्गदर्शन में भारतीय संविधान का प्रारुप तैयार कुया गया जो 26 जनवरी 1950 को पूरे देश में लागू किया गया.
why is ambedkar jayanti celebrated (अंबेडकर जयंती क्यों मनाया जाता है)
ड़ॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन गरीबों एवं महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित था. उन्होंने भारत के निचले तबके की आर्थिक स्थिति को सुद्रृढ़ करने के साथ साथ शिक्षित करने के लिए 1923 में “बहिष्कृत हितकरनी सभा” की स्थापना की थी. उन्होंने इंसानो की समता के नियम के अनूसरण के द्वारा भारतीय समाज को पुनर्निमाण के साथ ही भारत में जातिवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए ” शिक्षित करना ,आंदोलन करना,संगठित करना” के नारे का इस्तेमाल कर लोगों के लिये वे एक सामाजिक आंदोलन चला रहे थे .
Dr. BR Ambedkar jaynti in Hindi
बाबा साहब अंबेडकर कि जयंती पूरे देश में मनाई जाती है. विशेषकर महिलाओं,दलितों,आदिवासियों,मजदूरों और अन्य सभी समुदायों के उत्थान के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी . बाबा साहब की प्रतिमाओं और चित्रों में माल्यार्पण कर स्मरण कर उनके प्रति सम्मान प्रकट करते है.
Dr. BR Ambedkar Short Biography in Hindi
कोलंबिया विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा पास करने के बाद भीम राव ने पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक शोध-प्रबंध तैयार किया. सन् 1924 में उन्हें पी-एच.डी. की उपाधि मिली. उसके बाद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय छोड़ दिया और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला ले लिया.
इसी बीच बड़ौदा के राजा द्वारा दी जानेवाली सहायता की अवधि समाप्त हो गई, जिसके कारण इन्हें बंबई वापस लौटना पड़ा. बंबई में इन्हें सीडेनहोम कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया, लेकिन यहाँ भी उन्हें छुआछूत और भेदभाव की उसी समस्या का सामना करना पड़ा. वे अपने विषय के विद्वान् थे. पढ़ाने की उनकी शैली भी उत्तम थी.
इस कारण शीघ्र ही वे छात्रों के बीच लोकप्रिय होने लगे. उनके सहयोगियों से उनकी यह प्रगति सहन नहीं हुई और उन्होंने भीम राव का विरोध करना शुरू कर दिया. इन सबसे भीम राव के दिलो-दिमाग में फिर से लंदन घूमने लगा. जल्दी ही वह समय आ गया, जब डॉ. भीम राव आंबेडकर दोबारा लंदन गए.
Study at London School of Economics
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एम.एस-सी. करने के बाद उन्होंने ‘बार एट लॉ’ की उपाधि भी प्राप्त की. तत्पश्चात् वे बंबई लौट आए. बंबई में रहकर डॉ. भीम राव आंबेडकर ने वकालत शुरू कर दी. हत्या के एक मुकदमे में उन्होंने शानदार जीत हासिल की. यहीं से इनके भाग्य का सितारा चमकने लगा.
वकालत के साथ-साथ डॉ. आंबेडकर ने समाज-सुधार का कार्य भी आरंभ कर दिया. छुआछूत और जातीय भेदभाव का अभिशाप तो वे बचपन से ही झेलते आ रहे थे, इसलिए उन्होंने महाद और नासिक के अछूतों के सत्याग्रह का नेतृत्व किया. इसके अलावा अछूतों के उद्धार के लिए उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए.
सन् 1930 में अछूतों के प्रतिनिधि के रूप में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन गए. वहाँ भी उन्होंने समाज में अछूतों की दशा को प्रभावी ढंग से सामने रखा और उन्हें सम्मानजनक स्थान दिलाने की जोरदार वकालत की.
लंदन से लौटकर डॉ. आंबेडकर ने अहमदाबाद में गांधीजी से मुलाकात की. गांधीजी भी उस समय अछूतों के उद्धार के लिए प्रयासरत थे. दोनों ने अछूतों की समस्या के संबंध में विचार-विमर्श किया, परंतु दोनों के विचारों में असमानता थी.
बाबासाहेब आंबेडकर इतिहास
कांग्रेस के विचार से अछूतों को संयुक्त चुनाव में भागीदारी मिलनी चाहिए थी. गांधीजी अछूतों को अलग से प्रतिनिधित्व देने के सर्वथा विरुद्ध थे, लेकिन डॉ. आंबेडकर चाहते थे कि केंद्रीय विधानमंडल के चुनावों में अछूतों को अलग से प्रतिनिधित्व दिया जाए. इस संबंध में ब्रिटिश सरकार से बात करने के लिए डॉ. आंबेडकर लंदन भी गए. वहाँ उन्होंने अछूतों की समस्या और उनके नारकीय जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला. डॉ. आंबेडकर के व्यक्तित्व और उनकी योग्यता से प्रभावित होकर बहुत से ब्रिटिश पदाधिकारी इनके समर्थक बन गए.
अंततः डॉ. आंबेडकर के प्रयत्नों से अछूतो को अलग मतदान करने और अपने प्रतिनिधि भेजने का अधिकार मिल गया. गांधीजी पहले ही अछूतों को अलग से प्रतिनिधित्व देने के विरुद्ध थे, इसलिए जब उन्हें इस बारे में पता लगा तो उन्होंने इस निर्णय के विरोध में आमरण अनशन की घोषणा कर दी, जिससे अंततः इस निर्णय को रद्द कर दिया गया. इस निर्णय के बाद कांग्रेस ने अछूतों को विशेष सुविधाएँ देनी आरंभ कर दीं, जिसके परिणामस्वरूप अछूतों के प्रति हिंदुओं की भावना में भी काफी परिवर्तन आया.
पं. मदन मोहन मालवीय ने एक भरी सभा में अछूतों को कुओं, तालाबों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों के उपयोग का अधिकार दिए जाने की घोषणा की. उस सभा में यह घोषणा भी की गई कि उस दिन के बाद से किसी को अछूत नहीं कहा जाएगा. इसके लिए ‘अस्पृश्यता निवारण संघ’ की स्थापना की गई, जो कि आगे चलकर ‘हरिजन सेवक संघ’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. गांधीजी ने भी ‘हरिजन’ नाम से एक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया.
Dr. BR Ambedkar and Mahatma Gandhi
गांधीजी और डॉ. आंबेडकर के प्रयासों से अछूतों की स्थिति में काफी सुधार आने लगा. डॉ. आंबेडकर उन दिनों लॉ कॉलेज के आचार्य थे, लेकिन वे अपने इस कार्य से संतुष्ट नहीं थे. वास्तव में वे स्वतंत्र रूप से सार्वजनिक सेवा में उतरना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और अछूतों के उद्धार-संबंधी कार्यों में पूरी तरह से जुट गए.
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डॉ. आंबेडकर ने अनुभव किया कि अछूतों की स्थिति धीरे-धीरे सुधर तो रही थी, किंतु आशाजनक परिणाम अभी भी बहुत दूर हैं. हिंदू समाज के अधिकांश उच्चवर्गीय लोगों का अछूतों के प्रति कोई विशेष लगाव नहीं था. लंबे समय से जो रूढि़याँ समाज में व्याप्त थीं, उन्हें रातोरात बदल पाना संभव भी नहीं था.
यह सब देखकर डॉ. आंबेडकर के मन में गहरी पीड़ा होती थी. उन्हें इस बात का गहरा दुःख था कि केवल जाति को आधार बनाकर किस प्रकार एक मानव दूसरे मानव पर अत्याचार कर सकता है. उनके मन में बार-बार ये विचार आते कि सभी मनुष्यों की पहचान केवल मनुष्यता से क्यों नहीं हो सकती? क्यों सबको सम्मान से जीने का अधिकार नहीं मिल सकता?
key views of Dr.Bhimrao Ambedkar (डॉ.भीमराव अंबेडकर के प्रमुख विचार)
- जीवन लंबा होने के बजाय महान होना चाहिए.
- बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए.
- जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिए बेमानी है.
- मैं ऐसे धर्म को मानता हूँजो स्वतंत्रता,समानता और भाईचारा सिखाता है.
- समानता एक कल्पना हो सकती है.लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निग सिध्दांत के रुप में स्वीकार करना चाहिए.
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को 31 मार्च 1990 को मरणोपरंत “भारत रत्न” Bharat Ratna से सम्मानित किया गया. डॉ. भीम राव आंबेडकर जिस स्थान पर और जिन परिस्थितियों में जन्म मिला, उसके अनुकूल आचरण को ही भाग्यलेख मान लेना तो अत्यंत सहज है. ऐसा तो पशु भी करते ही हैं, परंतु मानव को यदि सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है, तो इसके पीछे कारण केवल इतना ही है कि वह इस भाग्यलेख को मिटाकर अपनी इच्छाशक्ति के बूते पर अपना भाग्य स्वयं लिख सकता है, और वैसा लिख सकता है, जैसा वह चाहता है. इच्छाशक्ति की यही अदम्य दृढ़ता मिलती है, डॉ. भीम राव आंबेडकर के जीवनचरित में. अछूत-संतान से लेकर ‘भारत-रत्न’ की उपाधि तक पहुँचने तक का उनका सारा इतिहास ही कड़े संघर्ष की गाथा है.
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