सर्वविदित है कि भारत ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को अपनाया है और यहाँ केन्द्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर कल्याणकारी योजनाएँ चलायी जाती है।
केन्द्रीय योजनाएँ किसी राज्य विशेष कुछ राज्यों या पूरे देश में लागू होती है, जबकि राज्य की योजनाएँ उसके अपने राज्य क्षेत्र में लागू होती है। केन्द्रीय योजनाओं का फायदा राज्यों को मिलता है।
बिहार जैसे गरीब, कम संसाधन और अतिसघन आबादी वाले राज्य में केन्द्रीय योजनाओं का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
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आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और बिहार
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम जय) की शुरूआत 23 सितम्बर 2018 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा झारखण्ड की राजधानी राँची से की गई।
यह विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सहायता योजना है। यह पूरी तरह सरकारी वित्त पोषित योजना है। केन्द्र और राज्य के बीच 60:40 अनुपात में इसमें वित्त पोषण का बटवारा है।
इस योजना का उद्देश्य प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 10.74 करोड़ से अधिक गरीब और वचित परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को मुहैया कराना है जो संपूर्ण देश के आबादी का 40% हिस्सा है।
इस योजना के अन्तर्गत अस्पतालों में लाभार्थी को स्वास्थ्य सेवाएँ निःशुल्क प्रदान की जाती है। यह चिकित्सा उपचार से उत्पन्न अत्यधिक खर्चे को कम करने में मदद करती है जो प्रत्येक वर्ष लगभग 6 करोड़ भारतीयों को गरीबी रेखा से नीचे पहुँचा देता है ।
पूर्व के अनुभवों से सीख लेते हुए योजना के तहत परिवार के आकार, आयु या लिंग पर कोई सीमा नहीं रखी गई है। इस योजना के अन्तर्गत शामिल व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने से 3 दिन पहले और 15 दिन बाद तक नैदानिक उपचार, स्वास्थ्य इलाज व दवाइयाँ मुफ्त उपलब्ध होती है।
इस योजना के अन्तर्गत पहले से उपलब्ध विभिन्न चिकित्सीय परिस्थितियों और गंभीर बीमारियों को प्रथम दिन से ही शामिल किया जाता है। इस योजना में 1574 प्रक्रियाएँ और 872 पैकेज शामिल है। दवाईयाँ, आपूर्ति, नैदानिक सेवाएँ, चिकित्सकों की फीस, कमरे का शुल्क, ओटी, आईसीयू शुल्क इत्यादि मुफ्त उपलब्ध है।
यह एक पोर्टेबल योजना है यानि की लाभार्थी इसका लाभ संपूर्ण देश में किसी भी सार्वजनिक सूचीबद्ध अस्पतालों में उठा सकते हैं। आर्थिक समीक्षा 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार पीएम-जय योजना 32 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेश में लागू है, 13.48 करोड़ ई-कार्ड जारी किए गए हैं, 1.55 करोड़ अस्पताल में भर्ती हुए हैं, 7,490 करोड़ के उपचार प्रदान किए गए हैं, 24215 अस्पताल सूचीबद्ध हुए हैं और 1.5 करोड़ उपयोगकर्ताओं ने योजना की बेबसाइट पर पंजीकरण करवाया है।
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बिहार पर प्रभाव
आयुष्मान भारत-जन आरोग्य योजना बिहार में भी लागू है। बिहार जैसे गरीब राज्य और कम स्वास्थ्य सुविधाओं वाले राज्य के लिए यह योजना काफी महत्वपूर्ण है। इस योजना को राज्य में लागू किए 2 वर्ष हो गया है।
इस योजना के तहत 20700 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। लगभग 53.92 लाख पात्र लाभार्थियों एवं लगभग 25.02 लाख परिवारों को गोल्डेन कार्ड जारी किए जा चुके हैं। इस योजना के तहत अब तक 833 अस्पताल जुड़े हैं जिनमें से 569 सरकारी और 264 निजी अस्पताल सम्मिलित है।
इन अस्पतालों को 144 करोड़ रूपया का भुगतान भी किया जा चुका है। इन सभी अस्पतालों में भर्ती व डिस्चार्ज के दौरान मरीजों का अनिवार्य रूप से प्रमाणीकरण किया जाता है। वर्ष 2020 में राज्य सरकार ने इस योजना को तेजगति से आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं।
इस योजना के अन्तर्गत बिहार में किसी निर्धारित पैकेज में सम्मिलित नहीं होने वाले सर्जिकल पैकेज के अन्तर्गत अब मरीज सूचीबद्ध अस्पतालों में पाँच लाख रूपए तक के खर्च वाले ऑपरेशन करा सकेंगे। ये प्रावधान हेल्थ बैनिफिट पैकेज 2.0 के तहत किए गए हैं । इस प्रावधान को 16 सितम्बर 2020 से लागू कर दिया गया है।
हेल्थ बैनिफिट पैकेज 2.0 के अनुसार 867 पैकेजों के तहत इलाज की 1574 प्रक्रिया निर्धारित किया गया है। इससे अधिक संख्या में निजी अस्पताल इस योजना से जुड़े सकेंगे। आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में तेजी लाने के इन प्रयासों का फायदा बिहार की गरीब और वंचित जनता को होगा।
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बिहार अधिक गरीब जनसंख्या वाला और कम स्वास्थ्य सुविधाओं वाला राज्य है। बड़े और गंभीर बीमारियों के लिए राज्य के सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था और सुविधाओं की भारी कमी है। राज्य की बड़ी आबादी के अनुपात में अस्पताल और स्वास्थ्य केन्द्र पर्याप्त नहीं है।
राज्य में निजी अस्पताल और डॉक्टर बड़ी मात्रा में हैं लेकिन इनका इलाज काफी खर्चीला होता है जो यहाँ की बहुसंख्यक आबादी के लिए वहनीय नहीं होता है। अतः अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाओं के कमी के कारण साधारण बीमारी भी बड़ी और गंभीर हो जाती है।
आयुष्मान भारत योजना इसी का समाधान प्रस्तुत करता है। राज्य में इस योजना के लागू होने से गरीब भी बड़ी और गंभीर बीमारी का इलाज सुविधायुक्त निजी अस्पतालों में करा रहे हैं जिसकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
भारत सरकार के आंकड़े के अनुसार चिकित्सा उपचार से उत्पन्न अत्यधिक खर्च के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 6 करोड़ भारतीयों को गरीबी रेखा से नीचे पहुँचा देता है जिसमें एक बड़ी संख्या बिहार की होती । आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-अरोग्य योजना बिहार में गरीबी कम करने में भी सहायक है।
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यह बिहार जैसे अत्यधिक गरीबी जनसंख्या वाले राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस योजना से बिहार में वैसे बहुत से लोगों की जान बच रही है जो पैसे के अभाव के कारण इलाज कराने में पहले सक्षम नहीं थे।
आयुष्मान भारत योजना ने कोविड-19 के संकट में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1 अप्रैल 2020 को पीएम जय के तहत कोविड-19 के लिए परीक्षण और उपचार उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया। इस फैसले का फायदा देश के करोड़ों लोगों को हुआ जिसमें बड़ी संख्या में बिहार के लोग भी शामिल है।
सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी कोविड-19 की जाँच और इलाज मुफ्त में उपलब्ध कराए गए। डायलसिस की उपलब्धता को भी इस योजना के दायरे में लाया गया। कोरोना काल में यह राज्य के गरीबों के लिए वरदान साबित हो रही है।
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आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ने राज्य में व्यापक प्रभाव डाला है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-20) की रिपोर्ट इसकी गवाही दे रहा है। लिंगानुपात और बीमा कवरेज में व्यापक वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य के प्रत्येक क्षेत्र में सुधार आया है। इस योजना का बिहार पर प्रभाव ऐसे राज्य से तुलनात्मक अध्ययन से और स्पष्ट होगा जहाँ पर यह योजना लागू नहीं की गई है।
प० बंगाल में यह योजना लागू नहीं किया गया है और इसकी तुलना पीएम-जय लागू करने वाले इसके पड़ोसी राज्य बिहार, सिक्किम और असम से करते हैं। बिहार, असम और सिक्किम बीमा कवरेज या उसका अनुपात 2015-16 से 2019-20 89% तक में बढ़ गया, जबकि प० बंगाल में इसमें 12% की कमी आयी है।
बीमा कवरेज, जन्म के समय लिंगानुपात, विटामीन ए की पुरकता, बच्चे का टीकाकरण, परिवार नियोजन की पद्धतियों, महिलाओं का अस्पतालों में आगमन, बच्चों के बचपन के बीमारियों का इलाज, एचआईवी/एडस के बारे में ज्ञान, कांडोम का उपयोग आदि में प० बंगाल की तुलना में बिहार, असम और सिक्किम में अधिक सुधार देखी गयी है। यह सुधार पीएम-जय योजना अपनाने से संभव हुआ है। शिशु और बाल मृत्यु दर में गिरावट प० बंगाल (20%) की तुलना में बिहार, असम और सिक्किम (28%) के लिए यह गिरावट अधिक थी।
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राज्य के मुजफ्फरपुर और उसके पड़ोसी एक दो जिलों में चमकी बुखार से हर साल सैकड़ों बच्चे बेहतर इलाज के अभाव में मर जाते हैं। इसमें से अधिकतर गरीब परिवार के बच्चे होते हैं। यह लाईलाज बिमारी भले ही है लेकिन अगर सही इलाज मिले तो बहुत बच भी सकते हैं।
इन्हें आयुष्मान भारत योजना का लाभ देकर अच्छे निजी अस्पतालों में इलाज करवाया जा सकता है। इस तरह के बीमारी से गरीबों और आर्थिक रूप से अक्षम लोगों की जान इस योजना के कारण बच सकती है।
इस तरह यह योजना राज्य के गरीबों के स्वास्थ्य आवश्यकताओं के पूर्ति के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति में सहायक है। इससे गरीबी में कमी आती है, कंगाल होने, जमीन बेचने और कर्ज लेने से बच जाते हैं और इलाज से बचे पैसों का इलाज अन्य गतिविधियों में करते हैं जो आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण को संभव बनाती है।
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प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और बिहार
यह योजना एक धुआंरहित ग्रामीण भारत की परिकल्पना और गरीब परिवारों के महिलाओं के चेहरों पर खुशी लाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा मई 2016 को शुरू की गई है। इस योजना के अन्तर्गत गरीब महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन मिलती है। कनेक्शन गरीब महिला लाभार्थियों के नाम जारी किया जाता है।
इस योजना के अन्तर्गत 1600 रु० की वितीय सहायता प्राप्त किया जाता है। योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए उपयोग में आने वाली जीवाश्म ईंधन की जगह एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा देना है।
बिहार पर प्रभाव
यह योजना बिहार राज्य के लिए वरदान से कम नहीं है। बिहार अत्यधिक ग्रामीण जनसंख्या वाला राज्य है। राज्य की 88% जनसंख्या गाँवों में बसती है जिसमें लगभग आधी आबादी महिलाओं की है। राज्य की अधिकतर महिलाएँ मिट्टी की चूल्हों पर लकड़ी, जीवाश्म ईंधन, गोयठा आदि का प्रयोग कर खाना बनाती है जिससे धुआँ व्यापक मात्रा में निकलता है जिससे महिलाओं और बच्चों में तरह-तरह की बीमारियाँ उत्पन्न होती है।
गरीब महिलाएँ इलाज करवाने के लिए सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहती है जहाँ वैसे भी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। इससे अतिरिक्त दबाव भी सरकारी स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इलाज के लिए कई लोग किसी नर्सिंग होम जाते है जिसकी इलाज महंगी होती है। ऐसे में उनकी गरीबी और बढ़ जाती है।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के माध्यम से गरीबों के घरों में गैस पहुंची है, जिससे उसकी स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। इससे दम घोटू धुएँ से आजादी मिली है, मृत्यु दर भी कम हुई है, समय की बचत होती हैं, इलाज के खर्चाों में कमी आयी है, खाने बनाने की परेशानियाँ आदि भी कम हुई है। राज्य में निश्चित रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है और छोटे बच्चों में स्वास्थ्य समस्या से कुछ छुटकारा भी मिला है। इस तरह यह योजना बिहार में महिलाओं की सशक्तीकरण को भी बढ़ावा दे रही है।
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राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए जंगलों, पेड़-पौधों तथा अन्य क्षेत्रों के पेड़-पौधों के लकड़ियों का व्यापक प्रयोग होता है। बिहार काफी कम वन संपदा वाला राज्य है। यहाँ पेड़-पौधों की भी भारी कमी है। खाना पकाने में लकड़ियों का प्रयोग से पेड़-पौधों की भी हानि पहुँचती है। उज्ज्वला योजना से पेड़-पौधों की कटाई कम होने से बिहार जैसे कम वन संपदा वाले राज्यों को फायदा हुआ है।
धुएँ की कमी और अशुद्ध जीवाश्म ईंधन के प्रयोग न करने से वातावरण में कम प्रदूषण होता है। बिहार की सघन आबादी और कम वनाच्छादन के कारण जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण एवं प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, इसलिए जल-जीवन हरियाली जैसी खर्चीली योजना चलानी पड़ी। उज्ज्वला योजना निश्चित रूप से इन समस्याओं का कुछ समाधान प्रस्तुत करती है। साथ ही इससे ग्रामीण इलाकों को स्वच्छ रखने में मदद मिलती है। विकसित बिहार के सात निश्चय में ग्रामीण स्वच्छता संबंधी उपाय और उज्ज्वला योजना ने मिलकर निश्चित रूप से गाँवों में स्वच्छ वातावरण का विकास किया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण का बाहरी प्रदूषण में 22 से 52% तक का योगदान है। इससे स्पष्ट होता है कि देश में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। उज्ज्वला योजना का उद्देश्य घरेलू वायु प्रदूषण को भी कम करना है। लस्सेंट-आईसीएमआर के रिपोर्ट के अनुसार भारत में घरेलू वायु प्रदूषण में कमी आई है। बिहार में हवा में पीएम 2.5 कणों की सघनता तयशुदा मानक से काफी अधिक है।
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यूएनईपी की रिपोर्ट के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है जिसका एक मुख्य कारण घरेलू ईंधन के तौर पर लकड़ी, कोयला, खेती और पशुओं के मल से पैदा अवशेषों का इस्तेमाल किया जाना है। बिहार में 75% घरों में जलावन के लिए परंपरागत साधनों का इस्तेमाल होता था। उज्ज्वला योजना के शुरूआत में 5 करोड़ गैस कनेक्शन का लक्ष्य रखा था जैसे बाद में हर गरीब परिवार को इस योजना के अन्तर्गत लाने का फैसला किया गया है। इस योजना के अन्तर्गत बिहार के कुल 1.25 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया गया है। इस योजना के अन्तर्गत देश के लाभूकों में बिहार उच्च स्थान पर है। घरेलू वायु प्रदूषण की कमी इस योजना का ही परिणाम है।
इस तरह उज्ज्वला योजना ने बिहार में सकारात्मक असर डाला है, डाल रहा है और इसे आगे अधिक तेज होने की उम्मीद है। सितम्बर 2020 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण परियोजनाओं को देश में समर्पित किया। परियोजना में पारादीप-हल्दिया- दुर्गापुर पाइपलाइन विस्तार परियोजना का दुर्गापुर-बांका खण्ड और दो एलपीजी बाटलिंग संयंत्र सम्मिलित है।
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बिहार में दो बाटलिंग प्लांट लगाए गए हैं। बांका और चंपारण में दो नए बांटलिंग प्लांट आरंभ किए गए हैं। इन दोनों संयंत्रों हर साल 125 मिलियन से अधिक सिलेंडर भरने की क्षमता है। इससे बिहार में उज्ज्वला योजना के तहत हर गरीब के घर में मुफ्त गैस पहुँचना आसान हो जाएगा।
बिहार में कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों को उज्ज्वला योजना से काफी मदद मिली है। बिहार कोरोना से आए काफी प्रभावित राज्य था। इससे लाखों बेरोजगार हो गए और कई लाख प्रवासी मजदूर बिहार लौट गए। कोरोना अवधि में राज्य के उज्ज्वला के लाभार्थियों को कई महीनों तक लाखों गैस सिलेंडर मुफ्त दिए गए जिससे गरीब परिवारों को महामारी संकट के दौरान राहत पहुँची। यह सहायता बिहार जैसे कम संसाधन वाले राज्य के लिए महत्वपूर्ण है। बिहार अति बेरोजगारी दर वाला राज्य है। उज्ज्वला योजना ने राज्य में रोजगार के अवसर भी पैदा किया है।
भले ही बिहार में उज्ज्वला योजना का अच्छा प्रभाव पड़ रहा है, लेकिन इसमें समस्याएँ भी है। बिहार एक गरीब और पिछड़ा राज्य है। इस योजना के अन्तर्गत मुफ्त कनेक्शन तो दिए गए हैं लेकिन सिलेंडर की रिफलिंग लाभार्थी नियमित रूप से नहीं करा पाता है। इसका कारण रिफलिंग की बढ़ती लागत और उनकी गरीबी है। जबकि ईंधन के अन्य स्रोत लकड़ी, जानवरों के मल से पैदा हुए साधन, खेती के अवशेष आदि बिना लागत के ही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
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इसके हानियों से लोग अवगत नहीं है। इससे अवगत कराने के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक किए जाने की आवश्यकता है। ग्रामीण गरीब परिवारों के लिए रिफलिंग की लागत सब्सिडी आदि पर सकारात्मक विचार करना होगा । अतः राज्य में घरेलू परंपरागत ईंधन की हानियों से अवगत कराकर गैस रिफलिंग के लिए प्रोत्साहित कर इसके लाभों को बढ़ाया जा सकता है। सरकार को इस दिशा में पहल करना होगा ।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना और बिहार
देश के सभी परिवारों विशेषकर गरीबों और वंचितों को बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध करवाने या खाता खोलने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री जन-धन योजना की घोषणा 15 अगस्त, 2014 को तथा इसका शुभारंभ 28 अगस्त 2014 की प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया। यह विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना है। इस योजना के अन्तर्गत बैंक खाते काफी आसान शर्तों पर और शून्य जमा राशि पर खोले जाते हैं।
माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इसे गरीबों के दुष्चक्र से मुक्ति के त्योहार के रूप में मनाने का अवसर बताया। जन-धन योजना वित्तीय समावेशन का एक राष्ट्रीय मिशन है जिसका उद्देश्य बैंकिंग बचत, जमा खाता प्रेषण ऋण बीमा, पेंशन आदि वित्तीय सेवाओं को प्रभावी ढंग से सभी को पहुँचाना है।
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इस योजना के तहत अब हर व्यक्ति विशेष और हर गरीब को खाता खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत पूरे देश में अब तक 40.35 करोड़ से अधिक खाते खोले जा चुके हैं जिसमें 1.31 लाख करोड़ रूपया जमा है। कुल खातों में 63.6% ग्रामीण इलाकों में है और 55.2% खाताधारक महिलाएँ हैं। जन-धन खातों में डेबिट कार्ड भी दिए जाते हैं।
बिहार पर प्रभाव
बिहार सबसे कम बैंकिंग सुविधाओं वाला राज्य है। यहाँ गरीबों की आबादी भी अधिक है। राज्य में गरीबी, अशिक्षा, खाते खोलने की जटिलताएँ आदि लोगों को बैंकिंग प्रणाली से दूर करती है और इससे जुड़ने के लिए हतोत्साहित करती है । ऐसे में प्रधानमंत्री जन धन योजना बिहार के लिए काफी महत्वपूर्ण योजना है। उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में ही सबसे ज्यादा खाता इस योजना के अन्तर्गत खुला है।
इस योजना के तहत खाता खोलने की सरल प्रक्रिया, शून्य जमा शर्त और आकर्षक लाभों ने बिहार के लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया है यहाँ गरीबों के लिए कई कल्याणकारी और अन्य योजनाएँ केन्द्र और राज्य सरकार के द्वारा चलाई जाती है।
योजनाओं में काफी भ्रष्टाचार व्याप्त रहता है। अब अधि कतर गरीब लोगों के खाते खुल जाने के कारण योजनाओं के पैसे, सब्सिडी आदि सीधे उनके खातों में पहुँच रही है। खाते खुल जाने से गरीबों में पैसे जमा कराने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। लोग शराब, नशा आदि से भी पैसे बचाकर अपने बैंक खातों में जमा कर रहे हैं। यह योजना बिहार में शराबबंदी और नशामुक्ति में भी सहायक हो रही है।
राज्य में इसके तहत महिलाओं के अधिक खाते खुले है। अब महिलाएँ भी बढ़ चढ़कर बैंकिंग सुविधाओं का फायदा उठा रही है। राज्य में महिलाओं के लिए कई कल्याणकारी और प्रोत्साहन योजनाएँ चल रही है, जिसका पैसा सोधे उनके बैंक खाते में पहुँच रही है। प्रति परिवार विशेषकर परिवार की स्त्री के लिए सिर्फ एक खाते में 10,000 रुपए की ओवर ड्राफ्ट की सुविधा मिल रही है।
यह योजना राज्य में महिला सशक्तीकरण में भी योगदान दे रहा है। विपदा और महामारी के समय भी जनधन योजना के अन्तर्गत खुले खाते से काफी सहायता मिल रही है। बाढ़-सुखाड़ और बीमा की राशि सीधे एकाउंट में भेजे जा रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन में गरीब कल्याण योजना के तहत महिला जनधन खाताधारकों की सहायता राशि ट्रांसफर की गई।
राज्य के बाहर लॉकडाउन में फंसे मजदूरों एवं जरूरतमंदों व्यक्तियों (प्रवासियों बिहारियों) के लिए राज्य सरकार 1000 रु० की सहायता राशि सीधे उनके बैंक खातों में भेजा।
जन-धन योजना रोजगार का भी माध्यम बनी है। इससे बैंक मित्रों को रोजगार दिया गया है जो बैंकिंग सेवाओं को गरीबों और अशिक्षितों के घर-घर तक पहुँचाने और पैसा दिलवाने, बीमा के क्लेम आदि में मदद करते हैं। बैंक मित्र ग्रामीण इलाकों में बेहद लोकप्रिय हैं। यह जनधन योजना का अप्रत्यक्ष लाभ है।
इस तरह हम देखते हैं कि प्रधानमंत्री जनधन योजना बिहार में सिर्फ वचित तबकों को ही नहीं जोड़ा है बल्कि आर्थिक गतिवधियों को बढ़ाकर आर्थिक सशक्तीकरण के साथ-साथ सामाजिक सशक्तीकरण में भी सहायता प्रदान की है।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान योजना और बिहार
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 20 जून 2020 को बिहार के खगड़िया के बेलदौर प्रखंड के तेलिहार गाँव से गरीब कल्याण रोजगार अभियान योजना आरंभ किया। यह योजना 6 राज्यों (बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड और उड़ीसा) के 116 जिलों में लागू किया गया है।
इस योजना के अन्तर्गत प्रवासी मजदूरों को 125 दिनों का कार्य मिला। इस योजना के अन्तर्गत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासी मजदूरों को अधिक लाभ प्रदान करना है।
कोरोना वायरस के संकट और पूरे भारत में लॉकडाउन की वजह से रोजगार छिन जाने के कारण मजदूरों पर असर पड़ा। उनकी रोजगार छिन गई है और वे अपने राज्य लौट आए।
ऐसे ही श्रमिकों को रोजगार देने के उद्देश्य से इस योजना को लागू किया गया है। बिहार में ऐसे प्रवासियों की संख्या काफी थी। वे सभी बेरोजगार हो गए और राज्य लौट गए। ऐसे मजदूरों की संख्या राज्य में 25 लाख से अधिक थी। ऐसे में यह योजना बिहार के मजदूरों को काफी राहत देने वाला साबित हुआ।
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बिहार सरकार भी अपने स्तर से प्रवासी श्रमिकों की रोजगार की व्यवस्था कर रही थी। लेकिन राज्य सरकार के पास संसाधनों की कमी है। ऐसे में यह योजना बिहार के लिए काफी राहत देने याला साबित हुआ । इस योजना को बिहार के 38 जिलों में से 32 जिलों को शामिल किया गया ।
केन्द्र सरकार इस पर 50 हजार करोड़ की राशि खर्च करने प्रावधान रखा है। हर पंचायत में 3.43 करोड़ रुपए खर्च करने की व्यवस्था है। इसमें बिहार को बड़ी राशि केन्द्रीय सहायता के रूप में मिलेगी।
इस रोजगार अभियान योजना के अन्तर्गत 25 प्रकार के कार्य और गतिविधियों को प्राथमिकता के आधार पर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इन कार्य सूची में सम्मिलित अधिकतर कार्यों में बिहार में रोजगार के अवसर अपार है। अतः इस योजना के अन्तर्गत राज्य में रोजगार मिलना मुश्किल नहीं रहा।
कोरोना संकट के दौरान रोजगार मिलने से राज्य में भुखमरी जैसी समस्या सामने नहीं आयी। इस योजना की शुरूआत करते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत योजना के अन्तर्गत क्षेत्रीय उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है और हर राज्य जिले में अनेक लोकल उत्पाद है, जिनको बढ़ावा देने पर क्षेत्रीय उद्योगों को लाभ मिलेगा।
बिहार में भी कई ऐसे लोकल उत्पाद है जिसको फायदा होगा। इस योजना से राज्य के प्रवासी श्रमिकों का आर्थिक सुधार हुआ है। और ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी में कमी आयी है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति बढ़ी है।
प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना और बिहार
असंगठित क्षेत्र के कामगारों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना आरंभ की है, जिसका उद्देश्य बुढ़ापे में वित्तीय सुरक्षा देना है। घर में काम करनेवाली मेड, ड्राइवर, प्लंबर, मोची, दर्जी, रिक्शा चालक, धोबी और खेतिहर मजदूर इसका लाभ उठा सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत 60 वर्ष की उम्र पूरी करने पर प्रत्येक महीने 3,000 रुपए की न्यूनतम पेंशन मिलेगी।
पेंशनभोगी की मृत्यु हेने पर 50% राशि उसकी पत्नी को मिलेगी। इस योजना के पात्रता के लिए 18 से 40 वर्ष की उम्र और 15000 रुपए से कम आमदनी होनी चाहिए। इसके लिए 18 वर्ष के उम्मीदवार को हर महीने 55 रुपए देने होंगे, वही 30 वर्ष की उम्र में आवेदक को 100 रुपए और 40 वर्ष वाले का 200 रुपए मासिक देने होंगे।
60 वर्ष की उम्र पूरी होने पर 3000 रुपए मासिक पेंशन मिलेगी। पहले से केन्द्र सरकार की सहायता वाली अन्य पेंशन योजना के लाभार्थी मानधन योजना के पात्र नहीं होंगे। प्रधानमंत्री की नरेन्द्र मोदी ने 5 मार्च 2019 को गुजरात के गाँधीनगर से इस योजना की शुरूआत की थी। इसका रजिस्ट्रेशन 15 फरवरी 2019 से ही आरंभ हो गया था।
बिहार पर प्रभाव
प्रधानमंत्री श्रम योगी पेंशन योजना असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए व्यापक पेंशन योजना है। यह योजना बिहार राज्य में भी लागू है। यह राज्य देश का सबसे निरक्षर और कम तकनीकी शिक्षा वाला राज्य है। यहाँ की आबादी भी काफी सघन है और गरीबों की संख्या भी अधिक है। ऐसे में यह योजना बिहार के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
तकनीकी व्यवसायिक और कौशलयुक्त शिक्षा के अभाव में यहाँ की बड़ी आबादी कम मासिक वेतन पर असंगठित क्षेत्र में राज्य और राज्य के बाहर कार्य करती हैं। एक अनुमान के मुताबिक 70 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक है।
ऐसे लोगों के लिए इस योजना का लाभ आगे जब अधिक उम्र के हो जाएंगे और काम करने में सक्षम नहीं होंगे, तब काफी राहत भरा होगा। बिहार सरकार एक बड़ी राशि पेंशन योजनाओं पर खर्च करती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में 42 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं। इसमें एक बड़ी आबादी बिहार राज्य का है और ये आबादी इस योजना का लाभ उठाकर अपना भविष्य सुरक्षित कर सकेंगे।
घर तक फाइबर योजना और बिहार
देश के हर गाँव को आप्टिकल फाइबर से जोड़ने के उद्देश्य से और हर गाँव में तेज गति की इंटरनेट की सभी सुविधा देने के लक्ष्य लेकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 21 सितम्बर 2020 को बिहार में घर तक फाइबर योजना लांच किया है। इस योजना के अन्तर्गत अब ग्रामीण क्षेत्र में तेज इंटरनेट पहुँचाने के लिए ब्रॉडबैंड सुविधा शुरू की जाएगी। इस योजना को पूरा होने पर हर गाँव के हर घर में तेज इंटरनेट सुविधा मिलेगी।
बिहार पर प्रभाव
यह योजना बिहार में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में आई जो बाद में पूरे देश में लागू की जाएगी। हर गाँव को इंटरनेट से सीएससी सेंटर द्वारा जोड़ा जाएगा जो गाँव-गाँव में फाइबर जोड़कर ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टविटी देगा। एफटीटीएच कनेक्टविटी से राज्य के 45 हजार गाँव और 8900 से अधिक पंचायत जोड़े जाएँगे ।
बिहार देश का दूसरा सबसे अधिक ग्रामीण जनसंख्या अनुपात वाला राज्य है जो सूचना प्रौद्योगिकी में सबसे पिछड़ा हुआ है। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में दूरभाष घनत्व (46) भी काफी कम है जो देश के प्रभुत्व राज्यों में नीचे से दूसरे स्थान पर है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार के गाँवों में इंटरनेट की सुविधा कितनी कम है। यानि राज्य की बड़ी आबादी इंटरनेट सुविधाओं से वंचित है।
जब राज्य के हर गाँव में इंटरनेट सुविधा होगी तो गाँव का विकास होगा। गाँव के विकास का सीधा अर्थ है राज्य का विकास क्योंकि राज्य की अधिकतर जनसंख्या (88%) गाँवों में निवास करती है। गाँवों में इंटरनेट की अच्छी कनेक्टविटी की सुविधा से उद्यम, व्यवसाय और रोजगार के अवसर भी बढ़ेगी।
प्रत्येक गाँव में इंटरनेट कनेक्टविटी होने से ई० कॉमर्स, शिक्षा, ई० फार्मेसी, कॉल सेंटर, ऑनलाइन बैंकिंग और ऑनलाइन स्टडी जैसी सुविधाएँ उपलब्ध होगी। गाँवों के लिए यह योजना लाभदायक है। बिहार की बहुसंख्यक जनता कृषि पर आश्रित है। किसान या छोटे उद्योगपति, नए उद्यमी अपने सामान को ऑनलाइन ई० कॉमर्स, ई० हाट आदि के द्वारा देश के हर कोने में बेच सकेंगे और आमदनी बढ़ेगी ।
गाँव-गाँव में इंटरनेट की सुविधा से रोजगार एवं नौकरी के अवसर बढ़ेंगे जिससे उन्हें अपना घर बार छोड़कर शहर नहीं जाना पड़ेगा। पलायन बिहार की बड़ी समस्या है। यहाँ से एक बड़ी आबादी रोजगार के लिए पलायन कर जाती है । ऐसे में यह योजना बिहार को काफी फायदा पहुँचाएगा। गाँव के लोगों को शिक्षा या उच्च शिक्षा प्राप्त करने में भी मदद करेगा । कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन से शिक्षा दी गई। राज्य का एक बड़ा वर्ग सुविधा के अभाव में ऑनलाइन शिक्षा से वंचित रह गया।
अभी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली काफी लोकप्रिय है जिसे मुफ्त या काफी कम खर्ची पर प्राप्त किया जा सकता है। राज्य के ग्रामीण विद्यार्थी भी इंटरनेट सुविधाएँ प्राप्त होने के बाद ऑनलाइन शिक्षा और अच्छे कंटेंट का फायदा उठा सकेंगे। ऑनलाइन माध्यम से आसानी से सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
बिहार में यह योजना महिला सशक्तीकरण के लिए भी सहायक साबित होगी। वे अपनी रोजगार गाँवों में रहकर शुरू कर सकती है, आनलाईन पढ़ा सकती है और अपने सुरक्षा अधिकारों और योजनाओं के प्रति भी सजग रह सकती है ।
अभी का युग सूचना का युग है। ऐसे में कोई समाज या क्षेत्र इससे वंचित रहकर तरक्की नहीं कर सकता। बिहार कम सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट सुविधाओं वाला राज्य है। इंटरनेट सूचनाओं का सबसे बड़ा माध्यम है। घर तक फाइबर योजना विकसित होने के लिए कसमसा रहा बिहार के लिए वरदान के समान है।
मनरेगा और बिहार
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGA), जो अब महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MNREGA) के रूप में जाना जाता है, को 2 फरवरी 2006 को ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के लिए प्रारंभ की गई।
प्रारंभ में इसे देश के 200 जिलों में लागू किया गया जिसमें बिहार के 15 जिले सम्मिलित थे। 2007-08 के आम बजट में केन्द्र सरकार ने बिहार के सभी 38 जिलों को इस योजना के अन्तर्गत लाया। यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। मनरेगा का लक्ष्य अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए व्यस्क सदस्यों वाले ग्रामीण क्षेत्रों के हर परिवार को न्यूनतम 100 दिनों का गारंटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराकर ग्रामीण श्रमिकों को जीविका संबंधी सुरक्षा बढ़ाना है।
“मनरेगा को ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए तैयार किया गया है जिसकी व्यापकता बिहार राज्य में अधिक है। बिहार में यह समस्या की मौजूदगी का कारण ग्रामीण क्षेत्रों में असमान भूमि वितरण है जिसकी परिणति कृषि श्रमिकों और सीमांत किसानों की बेरोजगारी के रूप में होती हैं और इन्हें अतिरिक्त रोजगार की जरूरत पड़ती है।
यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में गारंटीशुदा रोजगार के साथ-साथ यह ग्रामीण क्षेत्रों के लाभ के लिए सामुदायिक परिसंपतियों के निर्माण के लिए भी विकसित की गई है। अतः जीविका संबंधी सुरक्षा और सामाजिक संरक्षा पर अपने प्रभाव के कारण मनरेगा समावेशी विकास के लिए एक सशक्त प्रतिनिधि योजना बन गई है।
इस कार्यक्रम से आपदाजनक प्रवास में कमी आने की आशा है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रभाव होगा।
मनरेगा अपने आप में औरों से अलग अद्भुत कार्यक्रम है। इसका आधार अधिकार और मांग को बनाया गया है जिसके कारण यह पूर्व के इसी तरह के कार्यक्रमों से भिन्न हो गया है। अधिनियम के बेजोड़ पहलुओं में समयबद्ध रोजगार गारंटी और 15 दिन के अंदर मजदूरी का भुगतान आदि सम्मिलित है।
इसके अन्तर्गत राज्य सरकार को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे रोजगार प्रदान करने में कोताही न बरते क्योंकि रोजगार प्रदान करने के खर्च का 90% हिस्सा केन्द्र देता है। इसके अतिरिक्त इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि रोजगार शारीरिक श्रम आधारित हो। इस रोजगार अधिनियम मनरेगा में महिलाओं की 33% श्रम भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है। श्रम मद में 60% तथा सामग्री मद में 40% व्यय किए जाने की अधिकतम सीमा निश्चित की गई है।
विश्व का सबसे बड़ा रोजगारपरक कार्यक्रम मनरेगा बिहार में प्रारंभ से ही लागू है। आगे तालिका में बिहार में पिछले पाँच वर्षों में मनरेगा के प्रदर्शन के आँकड़े दिए गए हैं। इन आँकड़ों के अध्ययन से स्पष्ट है कि राज्य में जारी जॉब कार्ड की संख्या पूरी 170 लाख हो गई है। जबकि रोजगार प्राप्त करने वाले परिवारों की संख्या में पिछले पाँच वर्षों में लगातार बढ़ी है। बिहार में रोजगार पाने
वालों की संख्या वर्ष 2015-16 में 14.8 लाख थी जो बढ़कर 2019-20 में 33.8 लाख हो गई है। गिरावट 100 दिन रोजगर पानेवाले परिवारों की संख्या में भी देखो गई है। इस अवधि में यह 0.6 लाख से घटकर 0.2 लाख रह गई है। कुल सृजित रोजगार में महिलाओं का प्रतिशत 2015-16 से 2019-20 की अवधि में लगातार बढ़ा है। वर्ष 2015-16 में यह 40.9% से बढ़कर 2019-20 में 55.9% हो गया । प्रति परिवार औसत रोजगार व्यक्ति दिवस) में कमी तथा धनराशि के उपयोग के प्रतिशत में भी बढ़ोतरी देखी गई है। कुल मिलाकर 2019-20 में बिहार राज्य में मनरेगा का प्रदर्शन पिछले वर्ष (2015-16) से काफी बेहतर रहा है।
बिहार: मनरेगा का प्रदर्शन
वर्ष | 2021-16 | 2016-17 | 2017-18 | 2018-19 | 2019-20 |
परिवार में जारी जॉबकार्ड की संख्या (लाख) | 135.3 | 145.3 | 156.2 | 158.7 | 169.8 |
रोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या (लाख) | 14.8 | 22.9 | 22.5 | 29.2 | 33.8 |
100 दिन रोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या (लाख) | 0.6 | 0.14 | 0.16 | 0.25 | 0.2 |
रोजगार सृजन (लाख व्यक्ति-दिवस) | 668.2 | 854.4 | 817.2 | 1233.6 | 1418.9 |
कुल सृजित रोजगार में महिलाओं का प्रतिशत हिस्सा | 40.9 | 43.7 | 46.6 | 51.8 | 55.9 |
प्रति परिवार औसत रोजगार (व्यक्ति-दिवस) | 45.2 | 37.4 | 36.4 | 42.2 | 42.0 |
पुरे हुए कार्यों की संख्या (लाख) | 1.1 | 0.8 | 1.1 | 1.9 | 4.6 |
एमआईएम के अनुसार धनराशी का उपयोग (प्रतिशत) | 81.2 | 111.4 | 91.2 | 98.2 | 102.2 |
खुले खातों की संख्या (लाख) | 69.1 | 52.3 | 67.0 | 82.0 | 98.6 |
टिप्पणी-कोष्ठकों में दिए गए आँकड़े अपनी पूर्ववर्ती आड़ी पंक्ति के लिहाज से प्रतिशत दर्शाते हैं। स्त्रोत ग्रामीण विकास विभाग, बिहार सरकार ।
बिहार में मनरेगा के क्रियान्वयन में काफी अंतर देखने का मिल रहा है। वर्ष 2019-20 में सर्वाधिक 7.9 लाख पूर्वी चंपारण में तथा सबसे कम शिवहर में जारी किया गया। पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर सबसे अधिक और शिवहर, अरवल एवं शेखपुरा जिला सबसे कम जॉब कार्ड जारी करने वाले जिले हैं। जॉब कार्ड पाने वाले परिवारों में 22.2% अनुसूचित जाति के परिवार थे।
रोजगार माँगने वालों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में अरवल प्रथम स्थान पर था। वर्ष 2019-20 में महिलाओं की 60% से अधिक भागीदारी वाले जिले वैशाली, बेगूसराय और खगड़िया है। वहीं महिलाओं में कम भागीदारी वाले जिले बक्सर, गोपालगंज और रोहतास है। मनरेगा के तहत सर्वश्रेष्ठ वित्तीय प्रगति करने वाला जिला सहरसा था। यह जिला 2019-20 में 97.7% धनराशि का उपयोग किया। इसके बाद क्रमश: अरवल और जमुई का स्थान है।
मनरेगा के तहत वर्ष 2019-20 में व्यक्तिगत जमीन पर काम भूमि विकास और ग्रामीण पथ संपर्क परियोजना पर सबसे अधिक कार्य हुए।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मनरेगा ग्रामीण गरीबी दूर करने के दिशा में अच्छा प्रयास है तथा साथ ही इसके पूरी होने वाले परियोजनाएं ग्रामीण लोगों के लिए ग्रामीण अवसंरचना के विकास और जीविकोपार्जन के विकल्पों के विस्तार में मददगार है। यह जितना बड़ा कार्यक्रम है उतने ही बड़े पैमाने पर इसमें भ्रष्टाचार भी है। मनरेगा को और फलदायों बनाने के लिए इसमें फैले भ्रष्टाचार पर नियंत्रण आवश्यक है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान और बिहार
आत्मनिर्भर भारत अभियान प्रधानमंत्री श्री मोदी को एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसका उद्देश्य सिर्फ कॉविड-19 महामारी से लड़ना ही नहीं बल्कि भविष्य के भारत का पुननिर्माण कर आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना है। आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तंभ अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, प्रौद्योगिकी, जनसंख्यिकी (डेमोग्राफी) और मांग है।
कोविड-19से उत्पन्न परिस्थितियों और लॉकडाउन के कारण समस्याग्रस्त आम आदमी उद्योग एवं व्यापार, कृषि, किसान, श्रमिक, पशुधन आदि सभी प्रक्षेत्रों को प्रोत्साहन पैकेज और सहायता देने के लिए भारत सरकार द्वारा तीन चरणों में करीब 27.10 लाख करोड़ रुपए का आत्मनिर्भर भारत पैकेज की घोषणा की गई।
इस आर्थिक मदद से बिहार को भी बहुत लाभ हुआ और आगे भी होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान भारत को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। इससे बिहार भी सशक्त और आत्मनिर्भर बनेगा।
इस अभियान के तहत किए गए आर्थिक पैकेज का मुख्य फोकस सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग पर है। जिससे उत्तर प्रदेश और बिहार पर बहुत बड़ा सकारात्मक असर पड़ेगा। पलायन और रोजगार की समस्या भी इन दोनों राज्य में अधिक है। बिहार में इंडस्ट्रीज विभाग पैकेज के बाद हरकत में आया है और फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है।
बिहार में बड़े उद्योग नहीं है और लगने में भी मुश्किल है, ऐसे में आत्मनिर्भर पैकेज विहार के लिए बहुत मायने रखता है। बिहार में इसकी वजह से सूक्ष्म और छोटे उद्योग लगाने वालों को फायदा मिल सकता है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को मजबूती के लिए 3 लाख करोड़ रुपए के कौलेटरल फ्री ऑटोमेटिक लोन देने का एलान किया है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि और सहवर्ती क्षेत्र को भी भारी पैकेज दी गई है। किसानों, पशुपालको, मत्स्यपालकों, डेयरी उद्योग में लगे लोगों के लिए, मधुमक्खी पालकों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की गई है। इसमें एक बड़ी राशि बिहार के हिस्से में भी आएगी। ऐसे में बिहार जैसे कृषि प्रधान और अधिक ग्रामीण जनसंख्या वाला राज्य के लिए काफी फायदेमंद है। मत्स्य उद्योग, बिहार में काफी प्रगति कर रहा है। ऐसे में इस उद्योग को प्रोत्साहन देने से बिहार को बड़ा फायदा होगा।
फसलों के ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण में 50% की सब्सिडी से भी किसानों को फायदा होगा। पैकेज में माइक्रोफूड इंटरप्राजेज के फार्मलाईजेशन के लिए 10 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसके तहत देश के अलग-अलग हिस्सों के उत्पादों को ब्रांड बनाया जाएगा इसमें बिहार का मखाना की सम्मिलित है। इससे मखाना उद्योग को बड़ा फायदा होगा। देश में कृषि आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख रुपए का खर्च का प्रावधान भी बिहार के लिए अनुकूल है। इससे बिहार में कृषि आधारित उद्योगों को सहायता मिलेगी ।
आत्मनिर्भर भारत अभियान में स्वदेशी वस्तुओं पर जोर दिया गया है। प्रधानमंत्री जी ने लोकल के लिए वोकल का नारा दिया है। प्रधानमंत्री के अनुसार “हम लोकल के लिए जितना वोकल होंगे उतना ही बिहार आत्मनिर्भर बनेगा ।” वोकल फॉर लोकल के तहत केन्द्र सरकार ने बिहार से मखाना को चुना है।
बिहार में कई ऐसे स्थानीय उत्पाद है जिसकी ब्रांडिंग किए जाने की आवश्यकता हैं इसमें लीची, जर्दालू आम, मखाना, मधुबनी पेंटिंग्स आदि। वॉकल फॉर लोकल से ब्रांडिंग होगी और इसकी मांग बढ़ेगी जिससे राज्य का गाँव आत्मनिर्भर बनेगा। राज्य सरकार के उद्योग विभाग इसके लिए पहल भी कर दी है। बिहार के 2021-22 के बजट में भी आत्मनिर्भर बिहार पर जोर दिया गया है।
सात निश्चय पार्ट-2 के लिए इसमें खास तौर पर प्रावधान करके समाज के सभी क्षेत्रों को सबलता प्रदान की गई है। युवाओं को स्वावम्बी बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है।” बिहार सरकार ने पहले ही आत्मनिर्भर बिहार के सात निश्चय-2 (2020-25) के क्रियान्वयन की औपचारिक सहमति दे दी है।
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