6 April 2020 Essay On Mahavir Jayanti in Hindi – पूरे भारतवर्ष में महावीर जयंती को जैन समाज के द्वारा भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है. भगवान महावीर का जन्म लगभग 600 वर्ष पूर्व चैत शुक्ल त्रयोदशी के दिन क्षत्रियकुंड नगर में हुआ था. उनकी माता का नाम त्रिशला तथा पिता का नाम महाराज सिद्धार्थ था. कहा जाता है कि महावीर स्वामी के जन्म समय क्षत्रियकुंड नगर में 10 दिनों तक उत्सव मनाया गया. सारे रिश्तेदारों एवं नगर वासियों को आमंत्रित किया गया तथा उनका खूब सत्कार किया गया. उनके पिता का कहना था कि जबसे महावीर स्वामी का जन्म उनके परिवार में हुआ है तब उसे धन-धान्य, कोष – भंडार, बल आदि सभी राजकीय साधनों में वृद्धि हुई है तो उन्होंने सबकी सहमति से अपने पुत्र का नाम वर्द्धमान रखा.
भगवान महावीर बचपन से ही तेजस्वी और साहसी थे. उनकी शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत उनका विवाह राजकुमारी यशोदा के साथ संपन्न हुआ था. बाद में उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम प्रिय दर्शना था. भगवान महावीर कालांतर में कई नामों से जाने गए जिनमें प्रमुख ये – वर्द्धमान, महावीर, सन्मति, श्रमण आदि. भगवान महावीर ने अपनी कठिन तपस्या से अपने जीवन को अनूठा बनाया. उनके जीवन की बहुत सी कथाएं प्रचलित है.
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Mahavir Wore Disinterest (महावीर ने वैराग्य धारण किया)
भगवान महावीर ने माता पिता की मृत्यु के पश्चात वैराग्य धारण कर लिया. उन्होंने 30 वर्ष की आयु में वैराग्य लिया. इतनी कम आयु में घर एवं परिवार को त्याग कर ‘ केरालोचन ‘ कर जंगल मे रहने लगे. 12 वर्ष की कठोर तपस्या के पश्चात जंबक में ऋजु पालिका नदी के तट पर एक ‘ साल्व वृक्ष ‘ के नीचे उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ. उनके उपदेश चारों ओर फैलने लगे तथा तत्कालीन बड़े-बड़े राजा महावीर के अनुयायी बने. वे महावीर स्वामी ही थे जिनके कारण ही 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ जी द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों ने एक विशाल धर्म ” जैन धर्म “ का रूप धारण किया तथा महावीर स्वामी 24 वे तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्धध हुए तथा श्रेष्ठ महान आत्माओं के रूप में माने जाने लगे.
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Special Facts Of Lord Mahavira (भगवान महावीर की विशेष तथ्य)
भगवान महावीर द्वारा दिए गए पंचशील सिद्धांत ही जैन धर्म का आधार बने. इन सिद्धांतों को अपनाकर ही एक सच्चा अनुयायी जैन साधक बन सकता है. सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को पंचशील कहा जाता है.
- भगवान महावीर जियो और जीने दो के सिद्धांतों को मानते थे और इसी सिद्धांत को मानते हुए जैन धर्म के अनुयायी हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को त्यौहार की तरह मनाते हैं तथा दीप प्रज्वलित करते हैं.
- अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने के कारण वे जितेंद्रीय या जिन कहलाए. जीन से ही जैन धर्म को अपना नाम मिला.
- जैन धर्म गुरुओं के अनुसार भगवान महावीर के कुल 11 गणधर थे. जिनमें गौतम स्वामी पहले गणधर थे.
- भगवान महावीर ने 527 ईसा पूर्व कार्तिक कृष्ण द्वितीया के दिन अपनी देह का त्याग किया उस समय उनकी आयु 72 वर्ष की थी.
- बिहार के पावापुरी नामक स्थान में उन्होंने अपना देह त्यागा. जैन धर्मावलंबियों के लिए यह स्थान तीर्थ से कम नहीं है.
- भगवान महावीर के देह त्याग के पश्चात 200 साल बाद जैन धर्म दो संप्रदायों में बंट गया – स्वेतोंबर और दिगंबर.
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Message Of Lord Mahavir (भगवान महावीर का संदेश)
” भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ती, अनेकांत, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया. भगवान महावीर ने यज्ञ के नाम पर होने वाले पशुबलि तथा नरबलि का विरोध किया तथा लिंग भेद और जाति – पाति के भेद को मिटाने का भी संदेस दिया “.
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