भारत की स्वतंत्रता के समय क्लीमेंट आर. एटली ब्रिटिश प्रधानमंत्री थे। उनका कार्यकाल वर्ष 1945-1951 था। इस दौरान ब्रिटेन में लेबर पार्टी सत्ता में थी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी, 1947 को हाउस ऑफ कॉमन्स में यह घोषणा की कि अंग्रेज जून, 1948 के पहले ही उत्तरदायी लोगों को सत्ता हस्तांतरित करने के उपरांत भारत छोड़ देंगे।
उन्होंने ही कहा था “ब्रिटिश सरकार भारत के विभाजन के लिए उत्तरदायी नहीं है।” एटली ने वेवेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय नियुक्त किया, जिन्होंने 24 मार्च, 1947 को वायसराय का पद ग्रहण कर शीघ्र ही सत्ता हस्तांतरण के लिए पहल शुरू कर दी। उन्हें सत्ता के हस्तांतरण साथ यथासंभव भारत को संयुक्त रखने की विशेष हिदायत दी गई थी तथापि उन्हें इस बात के लिए भी अधिकृत किया गया था कि वे भारत की परिवर्तित परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय ले सकते हैं कि ब्रिटेन सम्मानजनक रूप से न्यूनतम हानि के साथ भारत से हट सके।
अवश्य पढ़ें:
- स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को क्यों मनाया जाता है?
- स्वतंत्रता दिवस का महत्व और ज़रूरी जानकरी – कैसे देश आज़ाद हुआ और कैसे मिली आज़ादी
- 14 सितंबर राष्ट्रीय पर्व – हिंदी दिवस
- 14 February Pulwama Martyrs Day | 14 फरवरी पुलवामा शहीद दिवस
- 5th September Teachers Day – शिक्षक दिवस का महत्व और क्यों मनाया जाता है | Inspiring Quotes In Hindi
माउंटबेटन योजना
माउंटबेटन शीघ्र ही सत्ता हस्तांतरण संबंधी वार्ताओं के दौरान इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे कि भारत का बंटवारा तथा पाकिस्तान की स्थापना आवश्यक हो गई है। उन्होंने एटली के वक्तव्य के दायरे में भारत विभाजन की एक योजना तैयार की, जिसे ‘माउंटबेटन योजना‘ के नाम से जाना जाता है।
माउंटबेटन योजना (3 जून, 1947) के अनुरूप ब्रिटिश संसद द्वारा जुलाई, 1947 में ‘भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम’ (द इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट) पारित किया, गया जिसमें भारत और पाकिस्तान नामक दो डोमिनियनों की स्थापना के लिए 15 अगस्त, 1947 की तिथि निश्चित की गई। भारतीय स्वतंत्रता विधेयक 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली द्वारा ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में पेश किया गया था।
15 जुलाई, 1947 को ‘हाउस ऑफ कॉमन्स‘ द्वारा तथा इसके अगले दिन (16 जुलाई, 1947 को ) ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’ द्वारा इस विधेयक को पारित कर दिया गया। तत्पश्चात इस विधेयक को राजकीय स्वीकृति 18 जुलाई, 1947 को प्राप्त हुई थी। 24 मार्च से 6 मई, 1947 के बीच भारतीय नेताओं के साथ 133 साक्षात्कारों की तीव्र श्रृंखला के बाद माउंटबेटन ने तय किया कि कैबिनेट मिशन की रूपरेखा अव्यावहारिक हो चुकी है। तब उन्होंने एक वैकल्पिक योजना बनाई, जिसे ‘बाल्कन प्लान’ का गुप्त नाम दिया गया।
सीमाओं के निर्धारण
ब्रिटिश भारत के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच पंजाब और बंगाल में सीमाओं के निर्धारण के लिए 30 जून, 1947 को पंजाब सीमा आयोग और बंगाल सीमा आयोग नाम से दो आयोग गठित किए गए। सिरिल रेडक्लिफ को इन दोनों ही आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। इन आयोगों का कार्य पंजाब और बंगाल के मुस्लिम और गैर-मुस्लिम आबादी के आधार पर दो भागों में बांटने हेतु सीमा निर्धारण करना था।
इस कार्य में इन्हें और भी कारकों का ध्यान रखना था। प्रत्येक आयोग में 4 सदस्य थे, जिनमें से दो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से और दो मुस्लिम लीग से थे। गांधीजी की प्रथम मुलाकात माउंटबेटन से 31 मार्च, 1947 को हुई। गांधीजी का यह सुझाव था कि अंतरिम सरकार पूर्ण रूप से लीग के नेता जिन्ना के हाथों सौंप दी जाए, जिससे भारत में सांप्रदायिक दंगों को रोका जा सके।
परंतु गांधीजी का यह सुझाव कांग्रेस नेताओं तथा वर्किंग कमेटी को मान्य नहीं था। बंटवारे के विरोध में गांधीजी ने कहा था कि-
“अगर कांग्रेस बंटवारा करेगी तो उसे मेरी लाश के ऊपर करना पड़ेगा। जब तक मैं जिंदा हूं भारत के बंटवारे के लिए कभी राजी नहीं होंगे और अगर मेरा वश चला तो कांग्रेस को भी इसे मंजूर करने की इजाजत नहीं दूंगा।”
विभाजन के प्रस्ताव के पारित
15 जून, 1947 को जिस समय कांग्रेस महासमिति ने दिल्ली में भारत के विभाजन का प्रस्ताव स्वीकृत किया उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे.बी. कृपलानी थे। इस प्रस्ताव को गोविंद वर्लभ पंत ने प्रस्तुत किया था तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद ने इसका समर्थन (Sec onded) किया। नवंबर, 1947 में जे.बी. कृपलानी ने कांग्रेस की अध्यक्षता से त्यागपत्र दे दिया। कृपलानी के त्यागपत्र के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। वर्ष 1948 में कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अगले अध्यक्ष बने।
वर्ष 1950 में कांग्रेस के नासिक अधिवेशन में पुरुषोत्तम दास टंडन कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने। इसके बाद वर्ष 1951 से 1954 तक कांग्रेस के अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू रहे और प्रधानमंत्री तथा पार्टी का नेतृत्व एक ही व्यक्ति द्वारा किए जाने की परंपरा प्रारंभ हुई। 14-15 जून, 1947 को संपन्न अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भारत विभाजन के विपक्ष में-खान अब्दुल गफ्फार खां (सीमांत गांधी) ने मतदान किया था।
विभाजन के प्रबल विरोधी
डॉ. सैफुद्दीन किचलू ने वर्ष 1947 में कांग्रेस कमेटी की बैठक द्वारा विभाजन के प्रस्ताव के पारित होने को राष्ट्रवाद का संप्रदायवाद के पक्ष में समर्पण’ के रूप में लिया। पंजाब प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डॉ. किचलू विभाजन के प्रबल विरोधी थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद इन्होंने स्वयं को कांग्रेस पार्टी से पृथक कर लिया और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए। 14/15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को अंतरिम संसद के रूप में संविधान सभा ने सत्ता ग्रहण की।
नियत दिन” से और जब तक दोनों डोमिनियनों की संविधान सभाएं नए संविधान की रचना न कर लें और उनके अधीन नए विधानमंडल गठित न हों जाएं तब तक संविधान सभा को ही अपने डोमिनियन के केंद्रीय विधानमंडल के रूप में कार्य करना था। 14 अगस्त की मध्य रात्रि को भारतीय संघ की संविधान सभा की बैठक हुई।
पंडित जवाहरलाल नेहरू का भाषण
स्वतंत्रता के अवसर पर संविधान सभा के सदस्यों के मध्य जवाहरलाल नेहरू ने प्रभावशाली भाषण दिया। 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि केंद्रीय असेम्बली में ‘जन-गण-मन’ तथा इकबाल का गीत ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी ने गाया था। पहले अवसर पर पं. जवाहरलाल नेहरू की भारत के प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने की थी। स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन (1947 48) और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1948 50) थे।
Also Read:
सी. राजगोपालाचारी वर्ष 1948-50 के दौरान स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय और अंतिम गवर्नर जनरल थे। इस पद पर वे 26 जनवरी, 1950 तक रहे। वर्ष 1952-1954 तक वे मद्रास के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 1959 में विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेसी नेताओं से मतभेद के कारण उन्होंने कांग्रेस छोड़कर ‘स्वतंत्र पार्टी’ का गठन किया। स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री बी.आर. अंबेडकर थे।
प्रारूप समिति का गठन
स्वतंत्रता के समय महात्मा गांधी की सलाह पर उन्हें केंद्रीय विधि मंत्री का पद संभालने का न्यौता दिया गया था। इस भूमिका में उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया। भारतीय राष्ट्रीय नेता 26 जनवरी (1930 में घोषित स्वतंत्रता दिवस का दिन) की तिथि को यादगार बनाना चाहते थे। इसी कारण नवंबर, 1949 में ही संविधान के तैयार हो जाने बाद भी इसे 26 जनवरी, 1950 को पूर्णतः लागू करने का निर्णय लिया गया था 26 जनवरी को ‘गणतंत्र दिवस’ के रूप में घोषित किया गया।
आर. कोपलैंड ने स्पष्ट शब्दों में लिखा था,
“भारतीय राष्ट्रवाद तो अंग्रेजी राज की ही संतति थी।”
परंतु कोपलैंड महोदय यह कहना भूल गए कि भारतीय राष्ट्रवाद एक अनैच्छिक संतति थी, जिसे इन्होंने जन्म के समय दूध पिलाने से इंकार कर दिया और फिर उसका गला घोंटने का प्रयत्न किया। ब्रिटिश राज में भारत के एकीकरण पर के.एम. पणिक्कर ने कहा था,
“ब्रिटिश शासन की सबसे अधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत का एकीकरण था।”
आप हमसे Facebook Page , Twitter or Instagram से भी जुड़ सकते है Daily updates के लिए.
इसे भी पढ़ें:
- Tokyo Olympic 2020-21 – टोक्यो ओलंपिक नीरज चोपड़ा ने स्वर्णिम अक्षर में रचा इतिहास | 13 साल बाद ओलंपिक में भारत को दिलाया गोल्ड
- भारतीय इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी | Indian History GK Quiz
- Indian History GK Questions And Answers In Hindi | भारत का इतिहास प्रश्न उत्तर
- भारतीय राजव्यवस्था सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी | Indian Polity GK Quiz In Hindi
- List Of National Parks In India PDF Download In Hindi | भारत के राष्ट्रीय उद्यान
- भारत का सर्वोच्च पुरस्कार “भारत रत्न” (India’s Highest Award “Bharat Ratna”)
- Indian Polity (भारतीय राजव्यवस्था) PDF Notes In Hindi For Competitive Exams (UPSC, SSC, Banking Or Railway)
- भारत सरकार की प्रमुख योजनाएं Indian Government Schemes 2021 PDF Download
- Indian Economy (भारतीय अर्थव्यवस्था) By Sanjeev Verma PDF Free Download
- Download History Of Modern India (आधुनिक भारत का इतिहास) By Bipan Chandra PDF
- Indian Political System General Knowledge Quiz | भारतीय राजनीतिक व्यवस्था सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
- भारत सरकार की प्रमुख योजना {भारत योजना 2021} Hindi PDF Download करे
- Indian And World History GK भारत एवं विश्व का इतिहास सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी का PDF Download करें
- प्राचीन भारत का इतिहास NCERT सार PDF हिंदी नोट्स | Download Now