अग्रेजी के कुछ शब्दों का हिन्दी मे अलग अलग अर्थ हो सकता है। ‘Potential SuperPower‘ इस शब्द का हिंदी में अर्थ संभावित महाशक्ति। यानी किसी देश का संभावित महाशक्ति बनने की घोषणा करना है। भारत की राजनीति में इन शब्दों का प्रयोग करके जनता को आकर्षित करने का प्लान ही है। राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह के शब्दों का प्रयोग इन दिनों खूब हो रहा है।
भारत की राजनीति में इस तरह की अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल कर आम इंसान को गुमराह भी किया जाता रहा है। शिक्षा, रोजगार, महंगाई, प्रदूषण जैसे मुद्दे चुनाव में गायब हो रहे हैं। असल में इन मुद्दों पर काम करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए सबसे बड़ी पहेली हो सकती है। इस मुद्दे पर यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव से पहले बोलना है तो वह केवल चुनावी ढोंग ही रह जाता है। जैसे ही चुनाव खत्म हुआ सरकार किसी की भी बनी इन सब मुद्दों से वह दूर हो जाता है फिर अगले 5 साल बाद चुनाव में मुद्दे गायब हो जाते हैं।
भारत की राजनीति में रोजगार महंगाई प्रदूषण शिक्षा जैसे मुद्दे आप दिखाई नहीं देते हैं। गरीबी जैसे मुद्दे भी आप गायब हो गए किसानों की समस्या जैसे मुद्दे मीडिया में नहीं है। निम्न आय वर्ग के लोगों के मुद्दे भी गायब है। बच्चों के मुद्दे गायब है। बुजुर्गों के मुद्दे गायब है। महिलाओं के मुद्दे गायबहैं। जल की समस्या और पर्यावरण की समस्या के साथ खेती किसानी की समस्या इन सब में राजनीति अब नहीं चलती है। चुनाव में कोई और ही मुद्दा हो चुका है जिसके बारे में यहां नाम ना भी लिया जाए तो आप समझ सकते है।
दुनिया के सुपर पावर देश जिसे हम हिंदी में महाशक्ति देश का सकते हैं। उनके यहां जागरूकता शिक्षा, रोजगार, पर्यावरण समस्या आदि पर ध्यान दिया जाता है लेकिन भारत जैसे देश में अभी इस पर चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है। असल में हम राजनीतिक दल की ऐसी पीढ़ी को जनता खड़ा कर रही है। जिनका सरकार सामाजिक मुद्दों से नहीं रहा है। अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करके और इंटरनेट में आकर्षक प्रचार करके बड़ी करने की कवायत आखिरकार इंटरनेट जगत में सोशल मीडिया के जरिए एजेंडा सेट करना ही अब सारी राजनीतिक पार्टियों का उद्देश्य हो गया है। ऐसे में राजनीतिक दल केवल मीडिया में ही नजर आते हैं। मुख्य धारा की मीडिया हो या यूट्यूब की मीडिया इसमें भी एजेंडा देखने को साफ मिल रहा है। असल में लोकतांत्रिक पत्रकारिता पर अगर आप सवाल करेंगे तो ऐसे पत्रकारों की संख्या केवल उंगलियों में गिनी जा सकती है। ऐसा नहीं की राजनीतिक दल में अच्छे नेता नहीं है लेकिन उन्हें भी ठीक ढंग से काम नहीं करने दिया जा रहा है।
हिंदी की जगह अंग्रेजी को महत्व राजनीतिक महत्वाकांक्षा नजर आ रही है
इस आर्टिकल में भले हम चर्चा कर रहे हैं कि सुपर पावर शक्ति बन चुका है लेकिन आप अपने आसपास नजर डालें क्या आपको ऐसा लगता है कि क्वालिटी एजुकेशन सबको मिल रही है या रोजगार में सब जुड़ गए हैं या सड़के बहुत सही हो गई है या फिर चारों तरफ बड़ी खुशहाली आ गई है। 15 साल का समय बिता जा रहा है और बहुत कुछ बदलाव भी आप समझ सकते हैं लेकिन बुनियादी मुद्दों से आखिर पीछे क्यों हट रही है सारी राजनीतिकदाल। आखिर जवाब दे ही जनता के प्रति क्यों नहीं होती है इनकी। जहां मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाता है वह भी क्यों विज्ञापन के झरोखे से ही अपने आप को जीवित रख पाया है और इसमें भी वह एजेंडा सेट करके आगे बढ़ रहा है।
हम मानते हैं कि आप एक अच्छे पाठक हैं और यह लेख अंत तक जरुर पढ़ेंगे निश्चित ही मानिए इसमें निराशा आपके हाथ नहीं लगेगी क्योंकि आशा की किरणें ही छिपी हुई है बदलाव ही नई पीढ़ी का उद्देश्य है।
कहां गए रोजगार के मुद्दे?
अब तक जिन मुद्दों को लेकर सरकार बनती रही हैं, उन मुद्दों पर कोई प्रगति न हुई न होने वाली है। ज़मीनी हकीकत पर नज़र डालें जहां शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है, वही टूटी-फूटी अग्रेजीयत भाषा का चलन बढ़ता जा रहा है। हिन्दी भाषा में बोल देने से आम लोगों को बात स्पष्ट समझ आ जाती। वहीं अग्रेजी भाषा के कुछ वैसे शब्दों का इस्तेमाल राजनीति में किया जाना शुरू हो रहा है। जिसका आस दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है।
संभावित महाशक्ति
वैसे और भी अर्थ हो सकते हैं किन्तु यहां राजनीति में इस शब्द को लेकर चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। सुपर पावर से पहले एक शब्द लगा दिया गया है – पोटेंशियल मतलब यह कि सम्भावना है, कि भारत विश्व महाशक्ति में शामिल हो जाएं। अभी विश्व महाशक्ति में माना जाने वाला- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पांच स्थायी सदस्य ब्रिटेन, चीन, अमेरीका, रूस और फ्रांस है। ये पांच सदस्यीय देश अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत के वजह, धन व सैन्य शक्ति के बल से अन्तरराष्ट्रीय घटनाओं पर सुरक्षा परिषद में वीटो पावर होने से कारण प्रभावशाली हैं। वर्तमान स्थिति पर नज़र डालें तो ब्रिटेन व फ्रांस जैसे देशों ने अपनी सैन्य शक्ति को जानबूझकर कम कर रहा है, क्योंकि? दो देशों के बीच होती रही युद्ध की संभावना अब कम हो गई है। विश्व में जापान, जर्मनी दो ऐसे देश जो वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्थिति में प्रभावशाली है किन्तु इन देशों की छवि सैन्य शक्ति वाली नही है। सऊदी अरब, ताईवान, आस्ट्रेलिया, इटली, सिंगापुर, स्पेन जैसे कुछ छोटे छोटे देश आर्थिक रूप से मजबूत तो बहुत हैं, भारत जैसे देशों से बेरोजगार बेरोजगारी की मार को झेलते इन्हीं सारे देशों में जाकर अपनी जीविका उपार्जन करते हैं! किन्तु ये छोटे-छोटे देश आर्थिक स्थिति से मजबूत किन्तु सैन्य शक्ति को लेकर प्रभावशाली नही हैं।
क्या भारत सुपर पावर बन सकता है?
सुपरपावर देश की श्रेणी में आने के लिए भारत अभी कोषों दूर है। भारत की आर्थिक स्थिति पर नज़र डालें तो अंदर से भारत बिल्कुल ही खोखला है। अपने सैन्य बल को भी आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है। धन अभाव के कारण अग्निबीर मतलब आधे पेट भोजन देने वाली प्रक्रिया के तहत युवाओं का भविष्य चौपट करने की रणनीति लागू किया है। भारत बेरोजगारी की दृष्टि से विश्व का नम्बर वन देश बनने की कगार पर है। कर्ज से डूबता जा रहा है। ऐसी स्थिति में ब्रिटेन, चीन, अमरीका, रूस व फ्रांस जैसे देशों कि श्रेणी से, योजन कोष दूर है। ऐसी स्थिति में नेताओं की चुनावी भाषणवाजी पर हम लेखकों को कुछ सोचना भी समय बर्बादी ही होगा। यहां चुनावी मुद्दा मे जो लेकर आया जाता रहा है, वो कभी हुआ भी नही! 2014 से ही चुनावी मुद्दे पर नज़र डाल स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
सुपरपॉवर महाशक्ति बनने के लिए भारत को क्या करना चाहिए :
सुपरपॉवर देश की श्रेणी में आने के लिए भारत को वास्तविक रूप से एक बड़ी शक्ति बनने की जरुरत है। कर्ज लेकर दान करने से आर्थिक स्थिति सुधरती नही और भी खराब हो जाती है। पहले आर्थिक स्थिति को सुधारने की तरीका अपनाया जाना चाहिए। जो विदेशों से जरुरत की सामान कमिशन खोरी के माध्यम से लिया जाता है उसे बन्द कर खुद अपने देश में उद्योगों को धीरे धीरे स्थापित कर देश की बेरोजगारी को दूर करना चाहिए। ताकि कोई देश ये न कह सके भारतीय हमारे पर आश्रित हैं। अगर हम रोजगार न दें तो भारतीयों की जीविका बंद हो जायेगी।
पांच सदस्यीय देशों को लेकर देखा जाए तो नागरिक जीविका उद्देश्य से रोजगार के लिए पलायन होते नज़र नहीं आता। भारत आवादी वाले दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, नाइजीरिया, इंडोनेशिया जैसे देशों की कतार में खड़ा है। जो अमिर नही हैं और संसाधनों के अभाव में सैन्य रूप से ताकतवर भी नही हैं।
कर्म धर्म लेखनी चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम आश्चर्य में डाल रही होगी जो भारत को इन देशों की कटेगरी में बता रहे हैं,- नाइजीरिया जैसे देश की कतार में शामिल किया हूं इसलिए कि भारत के प्रति व्यक्ति आर्थिक स्थिति नाइजीरिया के प्रति व्यक्ति आर्थिक स्थिति के समान ही है।
महाशक्ति बनने वाले देशों ने केवल अपनी आर्थिक स्थिति सुधार, सैन्य बल को मजबूत, ही नही किया बल्कि बिना किसी अपवाद, हिंसा पर नियंत्रण रखने में सक्षम हुआ। वहां आमजन की आर्थिक स्थिति मजबूत, जनता बिना किसी दबाव खुद टैक्स भरने को तैयार, कुशल न्यायिक सेवा उपलब्ध रही।
भारत की सरकारें तानाशाहों की सरकार रही हैं नेताओं ने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत, जनता को अपनी पेट भरने के लिए विदेशों के लिए पलायन करने को मजबूर करने वाले होते रहे हैं। देश में सेवारत एक ही कार्य का दो अलग अलग वेतन, कम वेतनभोगी से बधुआ मजदूर जैसा कार्य, न पेट भरने वाली पारिश्रमिक को भी समय से न देने की विचारधारा रही है।
ऐसा देश महाशक्ति बनने का महज़ देश की जनता को न पूरा होने वाला सपना ही दिखा सकता है। और कुछ नहीं। वैसे भी भारत की चुनावी मुद्दे सिर्फ चुनाव तक ही सीमित रहता है। सरकार गठन के बाद चुनावी मुद्दों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता रहा है। कुल मिलाकर शक्तिशाली देश बनने के लिए पहले अपनी विवेक को ठीक करते हुए देश व जन हित की सोचनी चाहिए। नाइजीरिया की श्रेणी में पहुंच चुका भारत पहले चीन ब्रिटेन अमेरीका रूस फ्रांस की श्रेणी के निकट तो पहूँच सके, ऐसे सकारात्मक कार्य करने कि जरुरत है।
चुनाव आते कभी धर्म, कभी देश संकट में है, कभी झूठे वादे बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई, आरोप, प्रत्यारोप लगा चुनाव अपने पक्ष में करवा लेने और महज़ विदेश दौरे मात्र से भारत सुपरपॉवर नही बन सकता। इतिहास रिकार्ड में नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो सबसे अधिक विदेश दौरे पर रहने वाले मात्र हैं। विदेश दौरे से सीख ले देश कि स्थिति मजबूत करने का रास्ता भी सोचना चाहिए। न कि कर्ज लेना।
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